वो इक सवाल-ए-सितारा कि आसमान में था तमाम रात ये दिल सख़्त इम्तिहान में था सुकूँ सराब ज़मीं में झुलस गया था बदन न जाने कौन धनक-रंग साएबान में था ज़रा सा दम न लिया था कि मुँद गईं आँखें मैं इस सफ़र से निकल कर अजब तकान में था वो जाते जाते अचानक मुड़ा था मेरी तरफ़ मुझे यक़ीं है कि वो फिर किसी गुमान में था उसे भुलाया तो अपना ख़याल भी न रहा कि मेरा सारा असासा इसी मकान में था