दयार-ए-इश्क़ में तेरा गुज़र होवे तो मैं जानूँ अगर सर तक भी जा कर राह सर होवे तो मैं जानूँ मिरा गिर्या बहा देता है हर इक बात को मेरी बस इन बातों से उस के दिल में घर होवे तो मैं जानूँ ख़राबी किस की है जो ये हमारे दश्त-ए-वहशत हो अगर इस बात का हामी ख़िज़र होवे तो मैं जानूँ न बरहम हो तू दाग़-ए-दिल को मेरे देख कर क़ातिल तिरी शमशीर के आगे सिपर होवे तो मैं जानूँ गुज़र कर जान से अपनी क़दम रख राह-ए-वहशत में अगर फिर उम्र-भर तुझ को ख़तर होवे तो में जानूँ जो तुझ से हो सके सौदा-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत कर दिल-ओ-जाँ तक भी जाने में ज़रर होवे तो मैं जानूँ किसी तदबीर से जा गर्म कर आऊँ अगर 'आरिफ़' गली में उस के दुश्मन का गुज़र होवे तो मैं जानूँ