सबा अश्कों से दामन धो रही है उदासी बाल खोले सो रही है ख़मोशी नग़्मा-ए-रूह-ए-तलब है सदा ख़ुद साज़ में गुम हो रही है लबों पर यूँही हल्का सा तबस्सुम निगाहों से शिकायत हो रही है हमीं से सब ने पहचाना है उन को उन्हें हम से शिकायत गो रही है तिजारत दीन ओ ज़र ईमाँ है इस का हयात-ए-नौ बसीरत खो रही है उगेंगी अब के ज़हर-आलूद फ़स्लें हवा ज़ेहनों में नफ़रत बो रही है सजा दें ज़ुल्फ़ अश्कों की लड़ी से उदासी बाल खोले सो रही है