दयार-ए-इश्क़ की शमएँ जला तो सकते हैं ख़ुशी मिले न मिले मुस्कुरा तो सकते हैं हमेशा वस्ल मयस्सर हो ये ज़रूरी नहीं दो एक दिन को तिरे पास आ तो सकते हैं जो राज़-ए-इश्क़ है उन को छुपाएँगे लेकिन जो दाग़-ए-इश्क़ हैं सब को दिखा तो सकते हैं हम इम्तिहान में नाकाम हूँ ये रंज नहीं इसी में ख़ुश हैं कि वो आज़मा तो सकते हैं नसीम-ए-सुब्ह के झोंके हैं ख़ुश-गवार मगर कभी कभी ये दिलों को दिखा तो सकते हैं यही बहुत है कि इस ख़ार-ज़ार-ए-दुनिया में तुझे हम अपने गले से लगा तो सकते हैं