जुनूँ इरफ़ान बन कर रह गया है ये कुफ़्र ईमान बन कर रह गया है ये कॉफ़ी-घर मिरी शामों का मेहवर मिरी पहचान बन कर रह गया है फ़रिश्ता जिस को बनना था वो इंसाँ फ़क़त हैवान बन कर रह गया है वो था इक नुक्ता-दाँ ख़ुश-फ़िक्र शाएर मगर नादान बन कर रह गया है सुख़न मेरा तिरी बज़्म-ए-तरब में सुरीली तान बन कर रह गया है ये कैसी महवियत है मेरा होना तिरा पैमान बन कर रह गया है हुए ना-पैद एहसास-ओ-तख़य्युल अदब बे-जान बन कर रह गया है जदीदियत में बे-चारा सुखनवर ख़िरद की शान बन कर रह गया है दबिस्तान-ए-सुख़न अब 'कृष्ण' मोहन शुऊरिस्तान बन कर रह गया है