दे दें अभी करे जो कोई ख़ूब-रू पसंद हम को नहीं पसंद दिल-ए-आरज़ू-पसंद मानिंद-ए-अश्क ख़ाक में आख़िर मिला दिया आई न आसमाँ को मिरी आबरू पसंद तुम ने वहाँ रक़ीब को पहलू में दी जगह याँ रह गया तड़प के दिल-ए-आरज़ू-पसंद उश्शाक़ से वो पूछते हैं तेग़ तोल कर है ज़ख़्म-ए-सर पसंद कि ज़ख़्म-ए-गुलू पसंद क़ुर्बान इस अदा के वो कहते हैं ऐ 'नसीम' आया है आशिक़ों में हमें एक तू पसंद