ज़ुल्म हद से गुज़रता रहा अश्क फ़रियाद करता रहा डर नहीं दुश्मनों का मुझे अपने साए से डरता रहा उस का किरदार था आइना उम्र-भर मैं सँवरता रहा पूछ कर ख़ैरियत वो मिरी और बीमार करता रहा ज़िंदगी तेरी ता'मीर में टूट कर मैं बिखरता रहा एक पल की ख़ुशी के लिए आदमी रोज़ मरता रहा रंग-ए-महफ़िल तो बदला नहीं लाख कोशिश मैं करता रहा कौन 'जावेद' दिल में तिरे रफ़्ता रफ़्ता उतरता रहा