दे के एहसास-ए-तमन्ना का बस इक जाम मुझे कर दिया किस ने रहीन-ए-ग़म-ए-अय्याम मुझे कम से कम तुम तो न देते कोई इल्ज़ाम मुझे मैं ने माँगी कि मिली क़िस्मत-ए-नाकाम मुझे मुद्दआ ये है कि दम भर न मिले दिल को क़रार भेजे जाते हैं जो पैग़ाम पे पैग़ाम मुझे अब तो एहसास-ए-तमन्ना भी है बार-ए-ख़ातिर किस जगह ला के ये छोड़ा दिल-ए-नाकाम मुझे हर तमन्ना है मिरी उन का तक़ाज़ा गोया मैं वही कहता हूँ होता है जो इल्हाम मुझे उन का 'आशुफ़्ता' करम राह-नुमा था वर्ना चलना मुश्किल था रह-ए-इश्क़ में दो-गाम मुझे