दे रहा था कहीं सदा कोई दूर तक पर नहीं दिखा कोई सोच कैसे तिरी मोहब्बत में मार के ख़ुद को भी जिया कोई इश्क़ भी इस तरह किया तू ने जैसे दफ़्तर का काम था कोई उस ने आवाज़ दी नहीं आख़िर मेरे अंदर ही मर गया कोई थक गई हूँ मैं याद कर के अब भूलने का हुनर सिखा कोई सारी दुनिया में हैरतें भर दे फिर तमाशा नया दिखा कोई मुझ में रौशन हुआ ख़ुदा जब से तब से बुझता चला गया कोई