दीद की एक आन में कार-ए-दवाम हो गया वो भी तमाम हो गया मैं भी तमाम हो गया अब मैं हूँ इक अज़ाब में और अजब अज़ाब में जन्नत-ए-पुर-सुकूत में मुझ से कलाम हो गया आह वो ऐश-ए-राज़-ए-जाँ हाए वो ऐश-ए-राज़-ए-जाँ हाए वो ऐश-ए-राज़-ए-जाँ शहर में आम हो गया रिश्ता-ए-रंग-ए-जाँ मिरा निकहत-ए-नाज़ से तिरी पुख़्ता हुआ और इस क़दर या'नी कि ख़ाम हो गया पूछ न वस्ल का हिसाब हाल है अब बहुत ख़राब रिश्ता-ए-जिस्म-ओ-जाँ के बीच जिस्म हराम हो गया शहर की दास्ताँ न पूछ है ये अजीब दास्ताँ आने से शहरयार के शहर ग़ुलाम हो गया दिल की कहानियाँ बनीं कूचा-ब-कूचा कू-ब-कू सह के मलाल-ए-शहर को शहर में नाम हो गया 'जौन' की तिश्नगी का था ख़ूब ही माजरा कि जो मीना-ब-मीना मय-ब-मय जाम-ब-जाम हो गया नाफ़-पियाले को तिरे देख लिया मुग़ाँ ने जान सारे ही मय-कदे का आज काम तमाम हो गया उस की निगाह उठ गई और में उठ के रह गया मेरी निगाह झुक गई और सलाम हो गया