दीन ओ दिल पहली ही मंज़िल में यहाँ काम आए और हम राह-ए-वफ़ा में कोई दो गाम आए तुम कहो अहल-ए-ख़िरद इश्क़ में क्या क्या बीती हम तो इस राह में ना-वाक़िफ़-ए-अंजाम आए लज़्ज़त-ए-दर्द मिली इशरत-ए-एहसास मिली कौन कहता है हम उस बज़्म से नाकाम आए वो भी क्या दिन थे कि इक क़तरा-ए-मय भी न मिला आज आए तो कई बार कई जाम आए इक हसीं याद से वाबस्ता हैं लाखों यादें अश्क उमँड आते हैं जब लब पे तिरा नाम आए सी लिए होंट मगर दिल में ख़लिश रहती है इस ख़मोशी का कहीं उन पे न इल्ज़ाम आए चंद दीवानों से रौशन थी गली उल्फ़त की वर्ना फ़ानूस तो लाखों ही सर-ए-बाम आए ये भी बदले हुए हालात का परतव है कि वो ख़ल्वत-ए-ख़ास से ता जल्वा-गह-ए-आम आए हो के मायूस मैं पैमाना भी जब तोड़ चुका चश्म-ए-साक़ी से पिया पे कई पैग़ाम आए शहर में पहले से बदनाम थे यूँ भी 'ज़ैदी' हो के मय-ख़ाने से कुछ और भी बदनाम आए