देख बुनियाद रब की आदम है जान लेगा अगर तू महरम है सब सिफ़त ऊस की देख ले उन में कह तू बंदा ख़ुदा से क्या कम है हर नफ़स क्यूँ कहें हैं साहिब-ए-दम कि जहाँ बीच उम्र-ए-दो-दम है पास है और नज़र नहीं आता मेरे वहशी में इस क़दर रम है तेरे बंदे हैं सब वले सब में बंदा-ए-कमतरीन 'हातम' है