देख जज़्बात-ए-नज़र सब राएगाँ हो जाएँगे वो निहाँ ही कब हैं नादाँ जो अयाँ हो जाएँगे क्या ख़बर थी राज़-हा-ए-दिल ज़बाँ हो जाएँगे मेरे दो आँसू भी मेरी दास्ताँ हो जाएँगे जान खो कर ग़म में जान-ए-दास्ताँ हो जाएँगे ये निशानी छोड़ कर हम बे-निशाँ हो जाएँगे आसमान-ए-हश्र हश्र-ए-आसमाँ हो जाएँगे जब ब-तशरीह-ए-जवानी वो जवाँ हो जाएँगे बे-ख़ुदी के बंदगी के ज़ौक़ के जज़्बात के एक ही सज्दे में सारे इम्तिहाँ हो जाएँगे ऐ ग़लत-अंदेश मेरे आँसूओं को तू न छेड़ ये ज़मीं पर गिर गए तो आसमाँ हो जाएँगे तू ठहर कर काश देखे वो भी वक़्त आने को है तुझ से कोसों दूर ऐ उम्र-ए-रवाँ हो जाएँगे कामराँ साबित वही होंगे रह-ए-मक़्सूद में जो क़दम बर्बाद सई-ए-राएगाँ हो जाएँगे आज सुनते हैं ज़माने की 'शिफ़ा' हम दास्ताँ कल ज़माने के लिए ख़ुद दास्ताँ हो जाएँगे