ग़म की जो लज़्ज़तें हैं उन्हें जावेदाँ बना दर्द-ए-निहाँ को चारा-ए-दर्द-ए-निहाँ बना उम्मीद-ओ-यास जिस में न हों वो जहाँ बना या'नी नई ज़मीं नया आसमाँ बना और आरज़ू-ए-सैर-ए-चमन को बहार में और ऐ असीर-ए-कुंज-ए-क़फ़स आशियाँ बना मश्क़-ए-वफ़ा में क्या कहूँ ये ग़म-नसीब दिल किन मुश्किलों से ख़ूगर-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ बना वहम-ओ-ख़याल पर भी तसल्लुत है बर्क़ का वहम-ओ-ख़याल में भी न अब आशियाँ बना तख़रीब ही में जल्वा-ए-ता'मीर था निहाँ जिस शाख़ पर मिटा था वहीं आशियाँ बना कह दे ज़बान-ए-हाल से रूदाद-ए-ग़म 'शिफ़ा' अपनी ख़मोशियों ही को अपनी ज़बाँ बना