देख कर दिल को पेच-ओ-ताब के बीच आ पड़ा मुफ़्त मैं अज़ाब के बीच कौन रहता है तेरे ग़म के सिवा इस दिल-ए-ख़ानुमाँ-ख़राब के बीच तेरे आतिश-ज़दों ने मिस्ल-शरार उम्र काटी है इज़्तिराब के बीच क्या कहूँ तुझ से अब के मैं तुझ को किस तरह देखता हूँ ख़्वाब के बीच शम्अ' फ़ानूस में न जब के छुपे कब छुपे है ये मुँह नक़ाब के बीच टुक तबस्सुम ने की शकर-रेज़ी बारे अब तल्ख़ी-ए-इताब के बीच क्या कहे वो कि सब हुवैदा है शान तेरी तिरी किताब के बीच है ग़ुलामी 'असर' को हज़रत-ए-'दर्द' ब-दिल-ओ-जाँ तिरी जनाब के बीच