देख कर जादा-ए-हस्ती पे सुबुक-गाम मुझे दूर से तकती रही गर्दिश-ए-अय्याम मुझे डाल कर एक नज़र प्यार की मेरी जानिब दोस्त ने कर ही लिया बंदा-ए-बे-दाम मुझे कल सुनेंगे वही मुज़्दा मिरी आज़ादी का आज जो देख के हँसते हैं तह-ए-दाम मुझे देख लेता हूँ अंधेरे में उजाले की किरन ज़ुल्मत-ए-शब ने दिया सुब्ह का पैग़ाम मुझे न तो जीने ही में लज़्ज़त है न मरने की उमंग उन निगाहों ने दिया कौन सा पैग़ाम मुझे मैं समझता हूँ मुझे दौलत-ए-कौनैन मिली कौन कहता है कि वो कर गए बदनाम मुझे गरचे आग़ाज़-ए-मोहब्बत ने दिए हैं धोके लिए जाती है कहीं काविश-ए-अंजाम मुझे तेरा ही हो के जो रह जाऊँ तो फिर क्या होगा ऐ जुनूँ और हैं दुनिया में बहुत काम मुझे