देख क्या तेरी जुदाई में है हालत मेरी कोई पहचान नहीं सकता है सूरत मेरी मैं तिरे हुस्न का ख़ल्वत में तमाशाई हूँ आईना सीख न जाए कहीं हैरत मेरी आप ने क़त्ल किया ख़ैर गिला मुझ को नहीं अपने कूचे में तो बनवाइए तुर्बत मेरी ख़त्त-ए-पेशानी में सफ़्फ़ाक अज़ल के दिन से तेरी तलवार से लिक्खी है शहादत मेरी दे के इक बोसा अजब नाज़ से दिलबर ने कहा ऐ 'शबाब' आज ये तुझ पर है इनायत मेरी