देख ले आ के तिरे बाद कहाँ तक पहुँचे हम पे अब रौशनी पहुँचे न धुआँ तक पहुँचे नींद आते ही कोई हम को जगा देता है दूर से आती है आवाज़ कहाँ तक पहुँचे तू मिरे देर से आने पे परेशाँ क्यों है और कितने हैं मिरे साथ यहाँ तक पहुँचे इस तरह भाग के वो मेरे क़रीं आया था जैसे बारिश में कोई अपने मकाँ तक पहुँचे मानती हूँ बड़ा मुश्किल है पहुँचना उस तक फिर भी इक बात रखी मैं ने जहाँ तक पहुँचे