बढ़ाता ही गया रफ़्तार कोई मगर आगे रहा हर बार कोई कहानी क्यों तुम्हें अपनी लगी थी अगर तुम सा न था किरदार कोई कबीरा की तरह ले कर लकाठी कभी आता सर-ए-बाज़ार कोई न जाने क्यों मिरे ख़्वाबों में अक्सर अचानक गिरती है दीवार कोई वो अपने आप से ऐसे मिला था मिला हो जैसे पहली बार कोई अकेले जंग थी दुनिया से मेरी मुझे करता रहा तय्यार कोई शिफ़ा-ख़ाना हुई जाती है दुनिया जहाँ देखो वहीं बीमार कोई