देख लेना गर्दिश-ए-अय्याम फिर मेरे हाथों में न आए जाम फिर चढ़ते सूरज की परस्तिश क्या करूँ डूब जाएगा तो होगी शाम फिर प्यास के मारों का हंगामा न पूछ मै-कदा लौटें न तिश्ना-काम फिर एहतिमाम-ए-गर्दिश-ए-दौराँ न पूछ सुब्ह होती है तो होगी शाम फिर उन की ज़ुल्फ़ों में उलझ कर रह गया आ गया हूँ क्या मैं ज़ेर-ए-दाम फिर लूटने वालों ने लूटा मै-कदा मेरे हिस्से में है ख़ाली जाम फिर जिस ने की बर्बाद 'मंज़र' ज़िंदगी आप के होंटों पे उस का नाम फिर