देखा जो मर्ग तो मरना ज़ियाँ न था फ़ानी के बदले मुल्क-ए-बक़ा कुछ गराँ न था शब को बग़ल में था भी तो वो दिलसिताँ न था शोख़ी ये कह रही थी कि याँ था वहाँ न था बे-वज्ह मुँह छुपाने से जो था निहाँ न था पर ख़ैर थी कुछ इस में कि मैं बद-गुमान न था ये तो नहीं कि अब के वो मुतलक़ वहाँ न था लेकिन सवाल-ए-वस्ल ये कहने को हाँ न था वो बुत ही कहूँ ज़मीं पे जो बला-गराँ न था हम-संग लेकिन उस का मगर आसमाँ न था हसरत के सदक़े आँख के मलते ही खुल गया वो कुछ कि मुम्किनात से जिस का बयाँ न था नाला जो अपना पाया-ए-तासीर से गिरा इतना सुबुक हुआ कि मैं इतना गराँ न था थे बज़्म में वो ग़ुंचा-ए-अफ़्सुर्दा शर्म से क्यूँकर कहूँ बहार में रंग-ए-ख़िज़ाँ न था कैसी हया कहाँ की वफ़ा पास-ए-ख़ल्क़ क्या हाँ ये सही कि आप को आना यहाँ न था सब काम अपनी एक निगह पर हैं मुनहसिर गोया मिरे लिए तो बना आसमाँ न था क्यूँ मुझ पे तेज़ की निगह-ए-क़हर की छुरी मैं दौर-ए-चर्ख़ में कोई संग-ए-फ़साँ न था कुछ अपने दिल के वलवले कुछ ज़ाहिदों की ज़िद सर फोड़ने को वर्ना वही आस्ताँ न था आईना को वो देखते हैं उन की शक्ल हम था हम को वो गुमाँ कि उन्हीं वो गुमाँ न था इंकार महज़ महज़ ग़लत मेज़बाँ सही माना कि बज़्म-ए-ग़ैर में तू मेहमाँ न था दुश्मन हरीफ़-ए-राह-ए-वफ़ा है ख़ुदा की शाँ वहाँ जिस पे था यक़ीन मुझे उस का गुमाँ न था हैरान हूँ हिजाब-ए-जुदाई उठा न क्यूँ वो नाज़नीं थे मैं तो कोई ना-तवाँ न था अब आसमाँ बन के मिरा मुद्दई' बना थी लब पे कुछ फ़ुग़ाँ तो फ़लक का निशाँ न था टपका ज़मीं पे गर फ़लक-ए-पीर को तो क्या फिर ये कहेंगे सब कि वो कुछ नौजवाँ न था कुछ जज़्ब दिल में जान के समझे थे उन को पास एक वहम से यक़ीन पे क्या कुछ गुमाँ न था गर्दूं से आज है फ़लक-ए-ज़ुल्म फट पड़ा सीना में आज ही दम-ए-आतिश-फ़िशाँ न था हुस्न-ए-जहाँ-फ़रोज़ से जिस जा न थे वो बुत मैं बे-निशानियों से जहाँ था वहाँ न था यूँ ख़ामुशी से ख़ुश कि वो तस्वीर थे मगर यूँ बात से ब-तंग कि गुय्याँ वहाँ न था भारी हुए यहाँ तो सुबुक होगी ज़िंदगी वहाँ तो नज़र से हम को गिराना गराँ न था थे बे-ख़ुदी में पास वो होश आई तो गए चूके ग़ज़ब ही होश में आना यहाँ न था आना ये उन का सुब्ह को मेरी अजल के साथ या'नी कि नाला-ए-शब-ए-ग़म राएगाँ न था था कुछ शिकस्त-ए-दिल से मिरा इम्तिहान-ए-सब्र वहाँ अपनी नाज़ुकी का फ़क़त इम्तिहाँ न था बे-मेहर यूँ न हो कि ये ख़ुश हो के मैं कहूँ शायद कि तू रक़ीब पे भी मेहरबाँ न था मैं और रोज़--वस्ल-ए-अदू और शब-ए-फ़िराक़ यहाँ आसमाँ न था कि वहाँ आसमाँ न था फ़रहाद कोहकन था ये इक हल्की बात है आशिक़ था बे-सुतूँ का उठाना गराँ न था शब मुझ से आँख मलती रही दिल रक़ीब से यहाँ यूँ सितम रहा कि किसी पर अयाँ न था था दोस्तों का यार तरीक़ और दिलों से दूर क्या था जो मैं ग़ुबार-ए-पस-ए-कारवाँ न था हैरान हूँ कि दम में तिरे क्यूँकि आ गया मैं वर्ना अपने दिल में कहाँ से कहाँ न था मरता हूँ कि क्यूँ न रहा दिल में तीर-ए-यार आराम-जाँ था कोई आज़ार-जाँ न था देखा न आँख उठा के मुझे नाज़ुकी से झूट ऐसा तो कुछ निगाह का उठाना गराँ न था ख़ाली दर उन का पाया तो दिल वहम से रुका था पासबाँ में आप जो वहाँ पासबाँ न था किस बे-दिली से हिज्र में की हम ने ज़िंदगी दिल था कहाँ कि यहाँ वो बुत-ए-दिलसिताँ न था मिट जाना अपना उस का रहा सब के दिल पे नक़्श एक ये भी था निशाँ कि मिरा कुछ निशाँ न था कुछ वहम सद्द-ए-राह-ए-सितम था कि वक़्त-ए-ज़ब्ह मेरे गुलू पे ख़ंजर-ए-क़ातिल रवाँ न था 'अनवर' ने बदले जान के ली जिंस-ए-दर्द-ए-दिल और इस पे नाज़ ये कि ये सौदा गराँ न था