देखा जो साया शब में ये समझा निगाह ने शायद वो आज आ गए वा'दा निबाहने वीराँ सी इस नवाह में आता ही कौन था आबाद कर दिया है इसे क़त्ल-गाह ने उन क़ातिलों पे कौन मुक़दमा चलाएगा जिन को लिया पनाह में आलम-पनाह ने हर बात पे जो मुझ से ये कहते हैं चुप रहो क्या अपने हुस्न को भी न देंगे सराहने क़ाएम उन्हीं फ़क़ीरों के दम से थी सल्तनत जिन को किया है मुल्क-बदर सरबराह ने अच्छा हुआ सहर ने उलट दी नक़ाब-ए-फ़िक्र भटका दिया था रात मुझे वाह वाह ने काग़ज़ अगर सियाह करें तो करें हरीफ़ सूरज उगाए हैं मिरी फ़िक्र-ओ-निगाह ने