देखा न हम ने रश्क से अग़्यार की तरफ़ मुँह फेर बैठे बज़्म में दीवार की तरफ़ सैल-ए-सरिश्क अपने ही घर में बहाएँगे क्यों जाए ये बला तिरी दीवार की तरफ़ बैठे बिठाए आए जो शामत तो क्या इलाज दिल ने कहा कि आओ चलें यार की तरफ़ चाही थी दाद हम ने दिल-ए-साफ़ की मगर आईना हो गया तिरे रुख़्सार की तरफ़ तस्वीर को भी उस की यहाँ तक ग़ुरूर है देखे कभी न तालिब-ए-दीदार की तरफ़ तक़्सीर मय-फ़रोश की ऐ मोहतसिब नहीं ये चीज़ उड़ के जाती है मय-ख़्वार की तरफ़ दी जान किस ख़ुशी से तह-ए-तेग़ 'दाग़' ने लब पर तबस्सुम और नज़र यार की तरफ़