देखें महशर में उन से क्या ठहरे थे वही बुत वही ख़ुदा ठहरे ठहरे उस दर पे यूँ तो क्या ठहरे बन के ज़ंजीर-ए-बे-सदा ठहरे साँस ठहरे तो दम ज़रा ठहरे तेज़ आँधी में शम्अ' क्या ठहरे ज़िंदगानी है इक नफ़स का शुमार बे-हवा ये चराग़ क्या ठहरे जिस को तुम ला-दवा बताते थे तुम्हीं उस दर्द की दवा ठहरे इश्क़ का जुर्म सहल काम नहीं कि हर इक लाएक़-ए-सज़ा ठहरे बीम-ओ-उम्मीद की कशाकश में इक दो-राहे पे जैसे आ ठहरे रोती आँखें झलक न देख सकीं बहते ज़ख़्मों पे क्या दवा ठहरे 'आरज़ू' वो हमें नसीब कहाँ कान तक जा के जो सदा ठहरे