देखी हैं बज़्म-ए-शौक़ की रानाइयाँ बहुत लिक्खी थीं पर नसीब में तन्हाइयाँ बहुत हैराँ हूँ किस तरह से वो मक़्बूल हो गया कहने को उस के साथ थीं रुस्वाइयाँ बहुत हम तो हिसार-ए-हिज्र से बाहर न जा सके उस की तो शहर में थीं शानासाइयाँ बहुत कुंदन सा जिस्म झूटी अना पर लुटा दिया कानों में गूँजती रहीं शहनाइयाँ बहुत ख़ुद अपनी ज़ात में ही मुकम्मल 'ग़ज़ल' हैं हम देखी हैं हम ने हुस्न की रानाइयाँ बहुत