देखना वो गिर्या-ए-हसरत-मआल आ ही गया बेकसी में कोई तो पुरसान-ए-हाल आ ही गया जुरअत-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना का सबब वो ख़ुद हुए मेहरबाँ देखा उन्हें लब पर सवाल आ ही गया दिल को हम कब तक बचाए रखते हर आसेब से ठेस आख़िर लग गई शीशे में बाल आ ही गया बेवफ़ाई से वफ़ा का देते वो कब तक जवाब दिल ही तो है रफ़्ता रफ़्ता इंफ़िआल आ ही गया ख़ुद-फ़रामोशी की लज़्ज़त ना-मुकम्मल रह गई बावजूद-ए-बे-ख़ुदी तेरा ख़याल आ ही गया एक मुद्दत से नहीं मिलता था 'वहशत' का पता ले तिरे कूचे में वो आशुफ़्ता-हाल आ ही गया