देखने को कोई तय्यार नहीं है भाई दश्त भी बे-दर-ओ-दीवार नहीं है भाई ऐसा भी सिदक़-ओ-सफ़ा का नहीं दावा हम को ज़िंदगी शैख़ की दस्तार नहीं है भाई पाक-बाज़ों की ये बस्ती है फ़रिश्तों का नगर कोई इस शहर में मय-ख़्वार नहीं है भाई इश्क़ करना है तो छुट्टी नहीं करनी कोई इश्क़ में एक भी इतवार नहीं है भाई