देखने में जो लगे शाम-ओ-सहर के साथी वो तो साथी थे फ़क़त राहगुज़र के साथी अब कहाँ हैं वो मिरे अश्क पिरोने वाले अब कहाँ हैं वो मिरे दीदा-ए-तर के साथी तुम को देखा तो मिरे दिल ने कहा तुम ही तो हो ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर ज़ख़्म-ए-नज़र के साथी इस में क्या शक ज़मन-अफ़रोज़ रहा है ये कलाम हम भी रहते हैं मुदाम अहल-ए-नज़र के साथी मैं अकेली ही चली जानिब-ए-मंज़िल 'अफ़रोज़' हम-सफ़र ठहरे मिरे सिर्फ़ सफ़र के साथी