अपनी बेचारगी पे रो न सके By Ghazal << देखने में जो लगे शाम-ओ-सह... ग़म-ए-दिल को बदल जाने की ... >> अपनी बेचारगी पे रो न सके तेरे क्या होते अपने हो न सके ज़िंदगी और वो भी माँगे की हम नदामत का दाग़ धो न सके ख़ुद-फ़रेबी की इंतिहा ये है दिल सी बेकार शय भी खो न सके ना-ख़ुदा के बग़ैर कुछ न बना अपनी कश्ती भी ख़ुद डुबो न सके Share on: