देखो आक़ा की गली और वो रौज़ा देखो अपनी नज़रों को सुकूँ बख़्श दो का'बा देखो मैं दिल-ओ-जान से रौज़े पे झुकी जाती हूँ दिल पुकारे ही चला जाता है जल्वा देखो मुश्किलों में भी वही इश्क़ तुझे था मय का ग़म सलामत रहे ख़ुशियों का फ़रिश्ता देखो सारे आलम में कोई रौशनी सी फूटी है सारी दुनिया में कोई नूर उभरता देखो आँख वीरान परेशान रहा करती है इक झलक तुम भी यहाँ आओ मदीना देखो ज़ख़्म भी फूलों की मानिंद महक उट्ठेंगे इक नज़र मेरी तरफ़ जान-ए-मसीहा देखो मिरे आक़ा की अक़ीदत से किताबें रौशन आओ आओ मिरे महबूब का क़िस्सा देखो तुम को हर ख़्वाब की ता'बीर मिलेगी 'रख़्शाँ' पहले सोचों में बसा कर वो अक़ीदा देखो