बन गई है मौत कितनी ख़ुश-अदा मेरे लिए सर झुका कर फूल करते हैं दुआ मेरे लिए तुम न मुरझाओ तो कलियो कल बता देना उसे कुछ समझ कर खोई खोई है सबा मेरे लिए मैं तो बस उन के ही रंग-ओ-नूर का अक्कास था मुज़्तरिब है क्यूँ सितारों की ज़िया मेरे लिए मेरी ही ख़ातिर था अहद-ए-तर्क-ए-आराइश मगर फिर वो आए हैं कनार-ए-आइना मेरे लिए जगमगा उठती है दिल में इक मुक़द्दस रौशनी जब नहीं होता कहीं भी आसरा मेरे लिए सोचता हूँ फिर उठा लूँ बरबत-ए-कोहना 'सलाम' मुंतज़िर है शेर-ओ-नग़्मा का ख़ुदा मेरे लिए