देखो फ़िराक़-ए-यार में जाँ खो रहा है वो 'शहज़ाद' को सँभालो बहुत रो रहा है वो आए नए जो ज़ख़्म तो ये रूह ने कहा कुछ देर बैठ जाओ अभी सो रहा है वो सहरा की ख़ाक हक़ में मिरे कह रही है ये जो होना चाहता था वही हो रहा है वो पहले भी ख़ाली हाथ था है अब भी ख़ाली हाथ और कब से बार-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ ढो रहा है वो ऐ आसमाँ तू शुक्र अदा उस का कीजियो बे-दिल ज़मीं के सीने में दिल हो रहा है वो देखो कहाँ किसे मिले 'शहज़ाद' दहर में हम ने सुना है ख़ुद को कहीं खो रहा है वो