देखते हैं मुझे हँस कर ये ज़माने वाले जैसे ग़म हैं ही नहीं मेरे दिखाने वाले आप बोलेंगे मिरे हक़ में नहीं रहने दें मेरे मुंसिफ़ भी नहीं मुझ को बचाने वाले अपने गाँव गया तो मुझ को हुआ ये मालूम दोस्त अब हैं ही नहीं शाम सजाने वाले मैं ने पूछा था तो वो रोने लगा था सुन कर याद आती है मिरी मुझ को भुलाने वाले जिन को लगती हैं मिरी बातें बुरी वो सुन लें मुझ को आते ही नहीं फ़न वो लुभाने वाले