देर तक उँगलियाँ निहारूँ मैं तेरी ज़ुल्फ़ों को जब संवारूँ मैं अपने सर को बदन से दूर करो तेरा सदक़ा अगर उतारूँ मैं ऐसा मंज़र कभी न आएगा फ़ासले से तुझे पुकारों मैं इश्क़ के भी उसूल होते हैं ये मिरी जीत है कि हारूँ मैं मैं किसी को बुरा कहूँ कैसे पहले ख़ुद को ज़रा सुधारूँ मैं दिल में 'हानी' किसी के बसना है पहले अपनी अना को मारूँ मैं