हिम्मत तमाम पेश-ए-सफ़र ख़त्म हो गई मंज़िल है दूर और डगर ख़त्म हो गई कैसे कटेगी रात तिरे इंतिज़ार में सिगरेट जो आख़िरी है अगर ख़त्म हो गई फैली फ़ज़ा में क्या तिरे अन्फ़ास की तपिश फिर सर्द रात खो के असर ख़त्म हो गई रोज़-ए-अज़ल से थी जो मिरे दिल में आरज़ू देखा जो उस को एक नज़र ख़त्म हो गई हाथों में अपने आब उधर उस ने क्या लिया सूखे लबों की प्यास इधर ख़त्म हो गई 'हानी' वो मेरा साथ निभाने तो आ गए तन्हाई की हयात मगर ख़त्म हो गई