ढलेगी रात तो निकलेगा आफ़्ताब कोई कि शहर-ए-ख़्वाब पे आएगा फिर अज़ाब कोई किसी का ज़िक्र कहाँ है मिरी कहानी में न जाने किस लिए इतना है आब आब कोई बड़ा हसीन सा मंज़र है अपनी आँखों में दिखाई देता है पानी में माहताब कोई न काम आ सकीं हाज़िर-जवाबियाँ मेरी मुझे भी कर गया पल-भर में ला-जवाब कोई मैं चाह कर भी किसी मोड़ पर नहीं रुकता दिल-ओ-निगाह में रहता है इज़्तिराब कोई मैं हर्फ़ हर्फ़ इसे पढ़ रहा हूँ बरसों से ये सैल-ए-वक़्त है जैसे खुली किताब कोई ये एहतिमाम-ए-नज़ारा भी ख़ूब है 'नौशाद' दिखाने आई है दुनिया मुझे भी ख़्वाब कोई