धीरे धीरे क़ब्र के अंदर तलक पहुँचाएगी एक दिन मुझ को मिरी ये हसरतें खा जाएँगी बोल कॉलर छोड़ दें मेरे चराग़ों की ऐ रात वर्ना जो पागल हवाएँ हैं तिरी पछताएँगी आओ अपने मसअलों को ख़ुद ही सुलझाते हैं हम ये सियासी पार्टियाँ और हमें उलझाएँगी बेटियों को साँस लेने दो खुले माहौल में वर्ना ये बेचारियाँ घुट घुट के ही मर जाएँगी ज़िंदगानी से हैं जो शिकवे गिले मिट जाएँगे रहमतें अल्लाह की जब नूर से नहलाएँगी अपनी ख़ुद्दारी को भी नीलाम मैं ने कर दिया मुझ से ये मजबूरियाँ अब और क्या करवाएँगी