धूप ऐसी तेज़ धूप गर्म है फ़ज़ा बहुत मिलेंगे छाँव ढूँडते बरहना-पा ख़ुदा बहुत ये राह बे-कनार बे-पनाह ख़िज़्र की फ़ुग़ाँ बहुत मिली थी ज़िंदगी मगर मिली ज़रा बहुत ख़िज़ाँ नसीब दौर में बहार की तसल्लियाँ मगर वो दिल जिसे है ख़ार-ओ-ख़स का आसरा बहुत उन्हें ख़बर करो कि शाम-ए-हिज्र आ रही है फिर जिन्हें वफ़ा-ए-अहद पर ग़ुरूर ओ नाज़ था बहुत फ़रेब-ए-आरज़ू पे और ए'तिबार के लिए उठाओ जाम वक़्त कम है वक़्त हो चुका बहुत