धूप बारिश हवा कमर-बस्ता और दरीचे में एक गुलदस्ता पेड़ से पेड़ कट गया वर्ना क्या कुल्हाड़ी अगर न हो दस्ता ग़म से ऐसे निढाल हूँ जैसे एक बच्चे की पीठ पर बस्ता बारिशों की दुआएँ माँगी हैं और दीवार घर की है ख़स्ता एक जुगनू था आस की सूरत भर गया रौशनी से सब रस्ता बाँध रक्खा है कब से रख़्त-ए-सफ़र कभी आवाज़ दे कोई रस्ता बात ख़ुश्बू की थी मगर 'फ़ारूक़' ध्यान आया किसी का बरजस्ता