धूप क्यूँकर न हो इताब-ज़दा साया साया है आफ़्ताब-ज़दा नींद आना वहाँ बुरा क्यों है जागना भी जहाँ हो ख़्वाब-ज़दा है तभी से हुजूम साहिल पर जब से तूफ़ाँ हुए हबाब-ज़दा बहर की कैफ़ियत ख़ुदा की पनाह क़तरा क़तरा है सैल-ए-आब-ज़दा ले के रोने से मुस्कुराने तक क्या नहीं आज इज़्तिराब-ज़दा कैसे आख़िर शनाख़्त करते हम दोस्त दुश्मन थे सब नक़ाब-ज़दा बे-मज़ा इम्तिहान-ए-ज़ीस्त हुआ हर सवाल आ गया जवाब-ज़दा खुल के मिलते 'निहाल' क्या जिस की बे-हिजाबी भी थी हिजाब-ज़दा