टुकड़ों से अपने दिल के जुदा हो गई है माँ यूँ लग रहा है जैसे बहुत रो गई है माँ सूरत को तेरी देखना मुमकिन नहीं रहा ये बीज क्या जुदाई का तू बो गई है माँ अहल-ए-अदब बेहिस हैं ख़ुदाया दुहाई है इन के गुनह का बोझ मगर ढो गई है माँ बच्चे ये पूछते हैं ख़लाओं में घूर कर कल तक यहाँ थी आज कहाँ खो गई है माँ फ़रज़ाना तेरे बच्चों को 'निगहत' बताएगी थक कर मसाफ़तों से सुनो सो गई है माँ