धूप होते हुए बादल नहीं माँगा करते By Ghazal << इस सदी का जब कभी ख़त्म-ए-... लफ़्ज़-ओ-मा'नी के समु... >> धूप होते हुए बादल नहीं माँगा करते हम से पागल तिरा आँचल नहीं माँगा करते हम बुज़ुर्गों की रिवायत से जुड़े हैं भाई नेकियाँ कर के कभी फल नहीं माँगा करते छीन लो वर्ना न कुछ होगा नदामत के सिवा प्यास के राज में छागल नहीं माँगा करते Share on: