धूप में बैठे हैं बच्चे हाथ में छागल लिए सो गईं शायद हवाएँ गोद में बादल लिए आ रहा है चुप के तालाबों में पत्थर फेंकता इक जुलूस-ए-कौदकाँ को साथ इक पागल लिए इन अँधेरी बस्तियों में रख न दरवाज़ा खुला कौन आता है यहाँ अपनाई की मशअ'ल लिए ज़ात में गुम-सुम यूँही सड़कों पे दिन भर घूमना और शब को सोचना पहलू में दिल बे-कल लिए क्या अजब उस पर महक ही जाएँ दरमाँ के गुलाब है तो इक शाख़-ए-नज़र उम्मीद की कोंपल लिए आज तक बे-सम्तियों की रह-रवी ने क्या दिया अब ज़रा दम ले भी लो 'बज़्मी' बहुत कुछ चल लिए