धूप सर से गुज़रने वाली है ज़िंदगी शाम करने वाली है आज रिश्तों को जोड़ कर रखिए कल तो हस्ती बिखरने वाली है ये जो बल खा के चल रही है बहुत ये नदी तो उतरने वाली है फिर बगूला उठा है बस्ती में फिर क़यामत गुज़रने वाली है यूरिश-ए-रंज-ओ-ग़म से तू 'आसिफ़' बन के कुंदन निखरने वाली है