बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताए कोई बात क्या हो गई आख़िर ये जताए कोई जिस ने मेरी तो कोई बात न मानी न सही मेरी जानिब से उसे जा के मनाए कोई मुंतज़िर बैठे हैं तुम आन के देखो तो सही नहीं आओगे यही आ के बताए कोई आज ख़्वाबों में बहुत हम को नज़र आए सराब दिन चढ़ा अब तो हमें आ के जगाए कोई तल्ख़ माज़ी तो मसाइब से भरा है 'साहिल' अहद-ए-माज़ी को भला कैसे भुलाए कोई