धूप थी साएबान था ही नहीं मेरा कोई मकान था ही नहीं मैं जहाँ जा के लौट आया हूँ उस के आगे जहान था ही नहीं तुम मुझे छोड़ भी तो सकते हो ये तो मुझ को गुमान था ही नहीं आप रोए थे क्यों बिछड़ते हुए कुछ अगर दरमियान था ही नहीं कैसे मुश्किल का सामना करते हौसला जब चटान था ही नहीं वक़्त इतना बुरा भी आएगा ये किसी को गुमान था ही नहीं हाल-ए-दिल किस के सामने रखते जब कोई मेहरबान था ही नहीं इस ज़माने ने कर दिया पत्थर वर्ना मैं सख़्त-जान था ही नहीं उस पे सब कुछ लुटा दिया 'आकिब' जो मिरा क़द्र-दान था ही नहीं