धूप थी साया उठा कर रख दिया ये सजा तारों का महज़र रख दिया कल तलक सहरा बसा था आँख में अब मगर किस ने समुंदर रख दिया सुर्ख़-रू होती है कैसी ज़िंदगी दोस्तों ने ला के पत्थर रख दिया मुंदमिल ज़ख़्मों के टाँके खुल गए बे-सबब तुम ने रुला कर रख दिया साबित-ओ-सालिम था दामन कल तलक तुम ने आख़िर क्यूँ जला कर रख दिया मिट गई तिश्ना-लबी आख़िर मिरी जब गले पर उस ने ख़ंजर रख दिया रो पड़ीं आँखें बहुत 'साहिल' मिरी जब किसी ने हाथ सर पर रख दिया