क़ैद रख कर उसे आज़ाद किया है मैं ने वक़्त किस खेल में बर्बाद किया है मैं ने ढूँढती है वो कहीं और ठिकाना अपना वो मोहब्बत जिसे ईजाद किया है मैं ने घर से बाहर मैं किसी से नहीं मिलने जाता इक नगर सोच में आबाद किया है मैं ने अब जो चाहूँ भी तो मैं शाद नहीं हो सकता ज़िंदगी क्यों तुझे नाशाद किया है मैं ने 'कैफ़' फ़ुर्सत नहीं इतनी कि पलट कर देखो वो समझता है सबक़ याद किया है मैं ने