धूप उठा ली मैं ने अपने हिस्से की भर ली थाली मैं ने अपने हिस्से की उस की आँखों में ख़्वाबों का जंगल था नींद चुरा ली मैं ने अपने हिस्से की जब भी अंधेरा होते देखा बस्ती में आग जला ली मैं ने अपने हिस्से की उस के हिस्से का जीवन तो दान किया उम्र बचा ली मैं ने अपने हिस्से की मसनद पर झगड़ा था लो ये मसनद भी कर दी ख़ाली मैं ने अपने हिस्से की भीड़ बहुत थी बने-बनाए रस्तों में राह निकाली मैं ने अपने हिस्से की कर रक्खी है आने वाले दिनों के नाम रुत हरियाली मैं ने अपने हिस्से की