ढूँडने ख़ुद ही चला आता सुकून-ए-दिल मुझे हाए-क़िस्मत तू ने रखा भी किसी क़ाबिल मुझे इज़्तिराब-ए-शौक़ कहता है अभी चलते रहो दे रही है दावत-ए-ख़त्म-ए-सफ़र मंज़िल मुझे मैं तो ये तय कर चुका था अब न आऊँगा मगर खींच लाया तेरी जानिब इज़्तिराब-ए-दिल मुझे जल्वा वज्ह-ए-बे-ख़ुदी ओ शौक़ वज्ह-ए-इज़्तिराब मुतमइन होने नहीं देती कोई मुश्किल मुझे बहर-ए-उल्फ़त में मिरी नाकामियाँ उफ़ अल-अमाँ ढूँढता हूँ हर तरफ़ मिलता नहीं साहिल मुझे उफ़ किसी करवट क़रार आता नहीं शाम-ए-अलम कर दिया है दर्द-ए-दिल ने इस क़दर बिस्मिल मुझे रंग लाना था न लाया मेरा ख़ून-ए-आरज़ू हश्र में होना पड़ा शर्मिंदा-ए-क़ातिल मुझे फिर उसी पुर-कैफ़ आलम की है मुझ को जुस्तुजू फिर वही नग़्मा सुना दे ऐ नवा-ए-दिल मुझे खुल न जाए राज़-ए-उल्फ़त अहल-ए-महफ़िल पर कहीं आप रह रह कर न देखें यूँ सर-ए-महफ़िल मुझे आ गए अश्क-ए-नदामत उन की आँखों में 'फ़ज़ा' देखिए अब क्या दिखाए जज़्बा-ए-कामिल मुझे